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हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र

संवत् 1664 विक्रमी के लगभग गोस्वामी तुलसीदासजी की बाहुओं में वात-व्याधि की गहरी पीड़ा उत्पन्न हुई थी और फोड़े-फुंसियों के कारण सारा शरीर वेदना का स्थान-सा बन गया था। औषध, यन्त्र, मन्त्र, त्रोटक आदि अनेक उपाय किये गये, किन्तु घटने के बदले रोग दिनोंदिन बढ़ता ही जाता था। असहनीय कष्टों से हताश होकर अन्त में उसकी निवृत्ति के लिये गोस्वामी तुलसीदासजी ने हनुमान् जी की वन्दना आरम्भ की। अंजनीकुमार की कृपा से उनकी सारी व्यथा नष्ट हो गयी। यह वही 44 पद्यों का 'हनुमानबाहुक' नामक प्रसिद्ध स्तोत्र है। असंख्य हरिभक्त श्रीहनुमान् जी के उपासक निरन्तर इसका पाठ करते हैं और अपने वांछित मनोरथ को प्राप्त करके प्रसन्न होते हैं। संकट के समय इस सद्यःफलदायक स्तोत्र का श्रद्धा-विश्वासपूर्वक पाठ करना रामभक्तों के लिये परमानन्ददायक सिद्ध हुआ है। मेरे कनिष्ठ बन्धु पं0 बेनीप्रसाद मालवीय जो इस समय पुलिस ट्रेनिंग स्कूल, मुरादाबाद में प्रोफेसर हैं, श्रीहनुमान् जी के अत्यन्त प्रेमी भक्त हैं। उन्हीं के अनुरोध से मैंने बाहुक की यह टीका तैयार की है। आशा है रामानुरागी सज्जनों को बाहुक के पद्यों का भावार्थ समझने में इससे बहुत कुछ सहायता प्राप्त होगी ।

चैत्र शुक्ल 1 सोमवार   
संवत् 1990 विक्रमीय

महावीरप्रसाद मालवीय वैद्य 'वीर'
ज्ञानपुर बनारस स्टेट (मिर्जापुर)


अनुक्रम

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